भारत में ब्रिटिश 1600 ई. में इष्ट इंडिया कंपनी के रूप में व्यापार करने आये थे. जिन्हे महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर तहत व्यापार के अधिकार प्राप्त थे. प्रारम्भ में कम्पनी सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक सिमित थी, परतुं जब 1765 में कंपनी के बंगाल, बिहार और ओडिशा के दीवानी (राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार) अधिकार प्राप्त कर लिए जिसके बाद कंपनी क्षेत्रीय शक्ति बनने लगी. और चलकर 1858 के ‘सिपाही विद्रोह’ के बाद ब्रिटिश ताज ने भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया. तथा स्वतंत्रता प्राप्ति तक कई प्रकार के विधिक कानून बनाये गए. जिसने भारतीय संविधान और राजतंत्र पर एक विशेष प्रभाव छोड़ा. जिनको इस प्रकार देखा जा सकता है-
इष्ट इंडिया कंपनी का शासन (1773 से 1858 तक)
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
यह ब्रिटिश सरकार (कम्पनी) द्वारा अपने कार्यों को नियमित तथा नियंत्रित करने की दिशा में बनाया गया पहला कदम था. इस कानून द्वारा भारत में केंद्रीय नींव रखी गयी थी तथा इसी एक्ट के तहट कंपनी को प्रशासनिक एवं राजनितिक मान्यता मिली थी.
अधिनियम की विशेषताएं
- बंगाल के गवर्नर लार्ड वारेन हेस्टिंग को ‘गवर्नर जनरल’ पद से सम्बोधित किया गया, जिसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी समिति बनायीं गयी थी. लार्ड वारेन हेस्टिंग बंगाल के पहले गवर्नर जनरल बने.
- बंगाल के गवर्नर के अधीन बम्बई और मद्रास के गवर्नर कर दिए थे. जबकि पहले ये एक दूसरे से अलग थे.
- इस अधिनियम के तहत ही 1774 में बंगाल में पहला उच्चतम न्यायलय की स्थापना की गयी जिसमे एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे.
- इस अधिनियम के द्वारा कोर्ट ऑफ़ डाइरेक्टर्स का निर्माण किया गया. इसका प्रमुख कार्य राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना था.
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद में एक संसोधित अधिनियम जिसे एक्ट ऑफ़ सैटलमेंट का नाम दिया गया. जिसे बाद में पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के नाम से जाना गया.
- कंपनी के वाणिज्यिक एवं राजनैतिक मामलों को अलग कर दिया गया.
- कम्पनी के राजनितिक मामलों के राजनितिक मामलों के प्रबंधन के लिए बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल (नियंत्रण बोर्ड) का गठन किया गया.
- नियंत्रण बोर्ड को शक्ति थी कि वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में नागरिक, सैन्य एवं राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण एवं नियंत्रण करे.
1833 का चार्टर अधिनियम
यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार की भारत में केन्द्रीकरण की दिशा में एक निर्णायक कदम था.
1833 का चार्टर अधिनियम की विशेषतायें
- बंगाल के गवर्नल को भारत का गवर्नल जनरल बना दिया गया जिसमे समस्त नागरिक एवं सैन्य शक्तिया निहित थी. इस अधिनियम के द्वारा ही पहली बार ऐसी सरकार का निर्माण हुआ जिसमे ब्रिटिश भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र पर नियंत्रण की पूर्ण शक्ति थी.
- मद्रास और बम्बई के गवर्नरों की विधायिका शक्ति छीन ली गयी तथा भारत के गवर्नर जनरल सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत की विधायिका शक्ति प्रदान कर दी गयी.
- कम्पनी की व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियां समाप्त कर दी गयी. अब वह एक प्रशासनिक निकाय बन गया था.
- इस चार्टर के द्वारा सिविल सेवकों के चयन के लिए एक खुली प्रतियोगिता का आयोजन की व्यवस्था करने का प्रयास किया गया. परन्तु कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया.
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1853 का चार्टर अधिनियम
यह अधिनियम 1793-1853 के मध्य ब्रिटिश संसद में पारित होने वाले अधिनियमों की श्रृंखला में अंतिम अधिनियम था, और संवैधानिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण अधिनियम था.
1853 का चार्टर अधिनियम की विशेषताएं
- इस अधिनियम द्वारा संसदीय शासन प्रणाली, जैसे –कार्यपालिका व विधानपरिषद, के विचार को प्रस्तुत किया गया जिसमे विधानपरिषद ब्रिटिश संसदीय मॉडल पर आधारित थी.
- इस अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को अनिश्चितकाल के लिए नवीनीकृत कर दिया.
- इस अधिनियम ने नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी जिनमें से 6 सदस्य नाम निर्देशित होते थे.
- इस अधिनियम ने गवर्नर जनरल की परिषद् के चौथे सदस्य की स्थिति भी बाकी सदस्यों के समान हो गयी क्योकि उसे भी मत देने का अधिकार प्रदान कर दिया गया. बाद में शामिल किये गए छह सदस्यों को ‘विधान परिषद् के सदस्य’ कहा गया. अतः इस अधिनियम के लागू होने के बाद गवर्नर जनरल की सहायता छह विधान परिषद् के सदस्यों ,चार गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों और एक सेनापति द्वारा की जाती थी.
- इस भारतीय सिविल सेवा के सदस्यों की नियुक्ति खुली प्रतिस्पर्धा द्वारा करने का प्रावधान था. जिसका अध्यक्ष मैकाले समिति को बनाया गया.
- इस अधिनियम द्वारा भारतीय (केंद्रीय) विधान परिषद् में सर्वप्रथम क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर प्रतिपादित किया गया.गवर्नर जनरल की परिषद् में मद्रास,बॉम्बे, बंगाल और आगरा की स्थानीय (प्रांतीय) सरकारों द्वारा छह नए विधान परिषद् के सदस्य नियुक्त किये गए.
- सर्वप्रथम इसी अधिनियम के तहत गवर्नर जनरल की परिषद को कार्यपालिका व विधायी कार्यों को अलग किया गया.