चक्रवात एक निम्न वायु केंद्र होता है, जहा पवन बाहर से केंद्र की ओर चक्कर काटती हुई गति करती है. अर्थात चक्रवात वायु परिसंचरण की वह प्रक्रिया है जिसमे प्रचलित पवनें अपनी गति के नियमों का उलंघन करते हुए किसी आवृत के चारों ओर चक्कर लगाने लगती है. उत्तरी गोलर्ध में पवन प्रवाह घड़ी की सुई दिशा के प्रतिकुल जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के अनुकूल होता है.
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
ये चक्रवात मूलतः वाताग्री दशाओं में निर्मित होते है. इनका प्रवाह ध्रुवीय पछुवा जेट के आलोक में पश्चिम से पूर्व की ओर है. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात हेतु वाताग्र जनन एक चक्रीय प्रक्रिया में विकसित होते है.
ये चक्रवात कुल छः अवस्थाओं में गुजरते है –
प्रारम्भिक अवस्था अथवा स्थायी वाताग्र की अवस्था – जब दो विपरीत विशेषताओं की वायु विपरीत दिशाओं से गति करते हुए एक दूसरे के सामानांतर परतुं विपरीत दिशाएँ विपरीत दिशाओं मे प्रभावित होने लगती है, तो एक संक्रमण क्षेत्र का विकास होता है. यही संक्रमण क्षेत्र विकास होता है यही संक्रमण क्षेत्र कस्थिर वाताग्र में मौसम स्वस्थ होता है, परन्तु धीरे – धीरे निम्नदाब केंद्र की ओर विकसित होने लगता है.
चक्रीय प्रवाह के प्रारम्भ की अवस्था – शीतल वायु अधिक घनत्व तथा गति के कारण पश्चिमी भाग पर दबाव उत्पन्न करती है. जिससे शीत वाताग्र में बलन मोड़ उत्पन्न होता है, अर्थात शीत वाताग्र उष्ण वाताग्र की ओर गति करने लगता है.
उष्ण खंड के निर्माण की अवस्था – गर्म वायु का क्षेत्र शीत वाताग्र के अधिक प्रभावी होने के कारण खंडीय रुप धारण कर लेता है. इस प्रकार शीत वायु राशि के क्षेत्र में वृद्धि होती है, तथा वायु का चक्रीय संचरण प्रारम्भ हो जाता है.