पवन (वायु) – वायु विभिन्न प्रकार के गैसो का मिश्रण है, जिसमे जारक, प्रांगार द्विजारेय, नाट्रोजन, उदजन ईत्यादि शामिल होती है।गतिमान वायु की पवन की संज्ञा दी जाती है.
उच्च वायुदाब ——> निम्न वायुदाब क्षेत्र
पवन गति को प्रभावित करने वाले कारक
दाब प्रवणता बल – दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता कहलाती है. दाब के इस अंतर के परिणाम स्वरुप जो बल उत्पन्न होता है उसे दाब प्रवणता बल कहा जाता है.
समदाब रेखा – मानचित्र पर समान वायुदाब वाले क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखा समदाब रेखा कहलाती है. डाब प्रवणता बल जितना अधिक होगा पवन की गति उतनी अधिक होती है.
घर्षण बल – पृथ्वी के सतह पर अवस्थित (उपस्थित) विभिन्न स्थलाकृतियों एवं स्थलरूपों के कारण पवन की गति पर घर्षण बल का प्रभाव उत्पन्न होता है. जिस कारण धरातल के समीप की वायु (पवन) मंद होती है, तथा 1-3 km की ऊचाई पर प्रवाहित होने वाली पवन की गति अत्यधिक तीव्र है.
Coriolis force कॉरिऑलिस बल– पृथ्वी का अपनी धुरी पर घुर्णन पवन की दिशा में विचलन उत्पन्न करता है. यही आभासी बल कॉरिऑलिस बल कहलाता है.
उत्तरी गोलार्ध में पवन में विचलन दायी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में विचलन बायी ओर होता है. कॉरिऑलिस बल का प्रभाव विषुवत रेखा पर शून्य तथा ध्रुवों पर सर्वाधिक होता है. यह बल पवन की गति के समानुपाती होता है.
प्रचलित पवनें – वर्ष भर निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली पवनो को प्रचलित पवन या स्थायी पवन कहा जाता है.
व्यापारिक पवनें – उपोष्ण उच्च कटिबंधों से उष्ण कटिबंधीय निम्न वायुदाब/ विषुवतीय निम्न वायुदाब की ओर प्रभावित होने वाली पवनें को व्यापारिक पवन कहलाती है.इनकी दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होने के कारण इन्हें पूर्वा पवन भी कहा जाता है.
उष्ण कटिबंधीय निम्न वायुदाब क्षेत्र में जहा ये पवनें अभिसरित होती है. वह क्षेत्रों को उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ- Inter-tropical Convergence Zone) कहलाती है.
ITCZ पर संवहन के उपरांत वायु उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में अवतलित होती है, तथा वायु का संचलन एक कोशिका का निर्माण करती है. जिसे हेडली कोशिका का नाम दिया जाता है.
पछुवा पवने – ये पवने उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों की ओर से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होती है. यह पवन अपने मार्ग में Coriolis force के प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में दाई ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपने बायीं और से विचलित होते हुए चलती है, और इसकी दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर हो जाने के कारण इन्हें पछुवा पवनें कहा जाता है. उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्ध में इन पवनों का प्रवाह अधिक स्थायी एवं निश्चित होता है. दक्षिणी गोलार्द्ध में ये पवनें अत्यधिक तीव्रता से प्रवाहित होती है, इसी कारण इन्हें विभिन्न अक्षांशों में अलग -अलग नाम दिए जाते है.
ध्रुवीय पवनें – ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होने वाली पवनों को ध्रुवीय पवन कहा जाता है. कॉरिऑलिस बल के प्रभाव में इनकी दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाती है, जिस कारण इन्हें ध्रुवीय पुर्वा पवन की संज्ञा दी जाती है.