बादल

वायुमंडल में स्वतंत्र रूप से जलकणों या हिमकणों के समूह जिनका निर्माण वायुमंडल में अंतर्निहित जलवाष्प के संघनन के फलस्वरूप होता है, बादल कहलाते है.  यह प्रायः समूह में निर्मित होते है.बादलो का निर्माण हल्की, गर्म एवं आंद्र वायु के वायुमंडल के ऊपरी सीमा में पहुँचकर विस्तारित होने अथवा रुद्धोष्म प्रक्रिया से ताप पतन के कारण शीतलन के परिणाम स्वरूप संघनन से होता है.

भूमध्य रेखा के समीप बादल अधिक ऊचाई तक स्थित होते है, जबकि ध्रुवों की ओर जाने पर यह ऊचाई काम होने लगती है.

बादलों का वर्गीकरण

बादलों का वर्गीकरण सामान्यतः ऊचाई, विस्तार, घनत्व, पारदर्शिता एवं रंगरूप के आधार पर किया जाता है.

उच्च मेघ (6-20KM)

पक्षाभ मेघ – इस प्रकार के बादलों में हिम कण अथवा हिम क्रिस्टल पाये जाते है. समताप मंडल की पछुवा पवनों के प्रभाव में इन बादलों में क्षैतिज संचरण होता है. इन मेघों को Mother of Pearl की संज्ञा दी जाती है.

पक्षाभ स्तरी मेघ- ये मेघ दूधिया रंग के विस्तृत चादर के सदृश्य फैले होते है. इन मेघों के कारण सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामंडल (Helo) का निर्माण होता है.

पक्षाभ कपासी मेघ – ये मेघ कपास के ढ़ेर जैसी संरचना में उपस्थित होते है इन बादलों को मैकरेल स्काई भी कहा जाता है.

मध्य मेघ(2.5-6KM)

मध्य स्तरी मेघ – ये मेघ भूरे रंग के होते है. इनका निर्माण जल की बूंदो एवं हिमकणों से होता है. इनसे कुछ वर्षा की संभवना होती है परंतु ये आभामंडल का निर्माण न करते है.

मध्य कपासी मेघ – ये बादल लहरदार धाराओं में पाए जाते है वायु की लंबवत धाराओं के कारण इन बादलों का विकास ऊपर की ओर होता है. पर्वत शिखरों पर स्थित ऐसे बादलों को पताका मेघ कहते है.

निम्न मेघ(2.5 से नीचे)

स्तरी कपासी मेघ – ये मेघ पृथ्वी की सतह से बहुत कम ऊचाई तक विस्तृत होते है, और कोहरे की भांति आकाश को ढंके रहते है. इनसे कुछ बूंदाबांदी की संभवना रहती है.

स्तरी मेघ – ये मेघ हल्के भुरे रंग के होते है तथा आकाश को ढके रहते है. बूंदाबांदी नहीं करते तथा प्रायः इनका निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली पवनों के परस्पर मिलने पर होता है.

वर्षा स्तरी मेघ – मूसलाधार वर्षा अत्यधिक वर्षा  मेघों की विशेषता होती है. ये मेघ नीचे से ऊपर विशाल मीनार की भांति प्रतीत होते है. इनकी सघनता अधिक होने पर अंधकार छा जाता है.

कपासी मेघ – साफ मौसम के सूचक होते है, तथा फूलगोभी जैसे सफेद कपास का ढ़ेर के रूप में प्रतीत होते है. इन मेघों से वर्षा नहीं होती है. कपासी वर्षा मेघ – इन बादलों का विस्तार ऊचाई में सर्वाधिक होता है. इन बादलों से अत्यधिक वर्षा ओलाबृष्टि तथा तड़ित झंझा की उत्पत्ति होती है. इन बादलों की आकृति Anvil (निहाई सरेखी ) होती है.

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