भारत शासन अधिनियम-1935
भारत शासन अधिनियम 1935 अगस्त,1935 में भारत में शासन हेतु (जिसमे वर्मा सरकार अधिनियम-1935) पारित किया गया सर्वाधिक विस्तृत अधिनियम था. इसमें अधिकथित था कि,यदि आधे भारतीय राज्य संघ में शामिल होने के लिए सहमत होते है तो भारत को एक संघ बनाया जा सकता है. इस स्थिति में उन्हें केंद्रीय विधायिका के दोनों सदनों में अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया जायेगा, लेकिन संघ से सम्बंधित प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सका.
यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदायित्व वाली सरकार के गठन में एक मील पत्थर साबित हुआ. यह अधिनियम एक लम्बा और विस्तृत दस्तावेज था जिसमे 321 धाराएं और 10 अनुसूचियाँ थीं.
भारत शासन अधिनियम 1935 की विशेषताएं
- इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना जिसमे राज्यों और रियायतों को एक इकाई की तरह माना गया. तथा इसमें तीन अनुसूचियाँ बनायीं गयी जिसमे अलग अलग विषयों का विभाजन था. संघीय सूची (59 विषय), राज्य सूची (54 विषय) तथा समवर्ती सूची (36 विषय) इन्ही के आधार पर शक्तियों का बंटवारा किया गया.
- इस अधिनियम के द्वारा केंद्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी हालांकि यह प्रावधान कभी लागु नहीं हुआ.
- इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारम्भ किया. इस अधिनियम के द्वारा राज्यों में उत्तरदायी शासन की व्यवस्था की गयी. जो 1937 में शुरू होकर 1939 तक चली.
- इस अधिनियम के द्वारा 11 राज्यों में से 6 राज्यों (बंगाल, बम्बई, मद्रास, बिहार, सयुंक्त प्रान्त, और असम) में द्विसदनीय शासन व्यवस्था प्रारम्भ की गयी. जिसमे कई प्रकार के प्रतिबंध थे.
- 1935 के अधिनियम ने महिलाओं, मजदूरों और दलित जातियों के लिए अलग निर्वाचन की व्यवस्था करके सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया.
- इस अधिनियम ने 1858 में बनाये गए भारत परिषद को समाप्त कर दिया.
- मताधिकार को बढ़ा दिया गया और लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया.
- इस अधिनियम के आधार पर ही मुद्रा और साख नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गयी.
- इसी के तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी.
- इस अधिनियम के द्वारा संघीय लोग सेवा आयोग के साथ साथ प्रांतीय सेवा आयोग तथा दो या उससे अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की भी स्थापना की.
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