जेट स्ट्रीम (धाराएं)
जेट धाराएं की खोज द्वितीयविश्व के समय अमेरिकी बम वर्षक विमानों अधिक ऊचाई पर उड़ने के दौरान की. बाद के वर्षों वैज्ञानिकों ने गहन अध्यन किया तथा इसे वायुमंडलीय तंत्र का महत्वपूर्ण अंग ठहराया। मानसून की उत्पत्ति तथा सूखे का विश्लेषण भी इन्ही हवाओं से सुस्पष्ट हो पाता है. ये हवाएं ऊपरी वायुमंडल में और विशेषकर समतापमंडल में तेज़ गति से बहने वाली हवाएँ हैं. इनके प्रवाह की दिशा जलधाराओं की तरह ही निश्चित होती है, इसलिए इन्हे जेट स्ट्रीम का नाम दिया गया है.
परिभाषा – जेट धारा से तात्पर्य अतिवेगमयी, समदाब रेखाओं के सामानांतर प्रवाहित होने वाली पवनों से है जो क्षोभमण्डलीय सीमा पर प्राप्त होने वाली पछुवा पवनों के कोर में अवस्थित एक विसर्पी प्रवाह है.
जेट स्ट्रीम की खोज रोसबी ने दाब प्रवणता पवन के रूप में की थी.
पीटरसन ने इन पवनों को तापीय धारा (Thurmal Current) कहा जो वायु कोशिकाओं के तापांतर का परिणाम होती है.
जेट धाराओं पर धरातलीय उच्चावच का प्रभाव भी होता है. उदाहरण के रूप में रॉकीज, एण्डीज, तथा हिमालय से इन धाराओं के परिवहन मार्ग में बाधाएँ उत्पन्न होती है.
जेट स्ट्रीम धरातल से ऊपर यानी 6 से 14 km की ऊँचाई पर लहरदार रूप में चलने वाली एक वायुधारा है. इस वायुधारा का सम्बन्ध धरातल में चलने वाली पवनों के साथ भी जोड़ा गया है.
उपोष्ण कटिबंधीय जेट स्ट्रीम
इन धाराओं का प्रवाह 20º -35º के मध्य दोनो गोलार्धों में होता है. उष्ण कटिबंधीय हेडली कोशिका की ऊपरी पवन तथा उपोष्ण क्षेत्रों की फेरल कोशिका की ऊपरी पवन के मध्य तापांतर के कारण इस जेट धारा का उदभव होता है.कोरियालिस बल के आलोक में ये धाराएं पश्चिम से पूर्व की ओर संचलित होने लगती है.
उपध्रुवीय जेट धारा
ध्रुवों से उपधुवीय निम्नदाब क्षेत्रों की ओर प्रवाहित होने वाली ध्रुवीय पूर्वा तथा उपोष्ण कटिबधों से प्रभावित होने वाली पछुवा पवनों के मध्य तापांतर के कारण गर्म पछुवा का उत्थान हो जाता है, तथा क्षोभसीमा के पास इनका प्रवाह कोरियालिस बल के प्रवाह में पश्चिम से पूर्व की ओर हो जाता है. इस जेट धारा को उपध्रुवीय जेट धारा कहा जाता है.
इन जेट-धाराओं का प्रभाव शीतोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में विकसित होने वाले चक्रवात एवं प्रतिचक्रवातों से भी है.
ध्रुवीय रात्रिं जेट
ध्रुवीय रात्रि जेट का सम्बन्ध शीतकालीन लम्बी ध्रुवीय रात्रि से है. यह धारा शीत कल में निर्मित होती है, तथा ग्रीष्मकाल में समाप्त हो जाती है. लम्बी शीत रातों में ध्रुवों पर सूर्यातप की मात्रा न्यूनतम होती है, जबकि ऊपरी वायुमंडल में समतापमंडल पर्याप्त मात्रा में सूर्यातप प्राप्त करता है. जिस कारण समताप मंडल के क्षेत्र में निम्न वायुदाब प्राप्त होने के कारण पवनों का चक्रीय प्रवाह विकसित होता है. जो ध्रुवों पर न्यून तापमान के कारण पवनों को प्रक्षेपित करता है. समतापमंडल के चक्रीय प्रवाह को ही ध्रुवीय रात्रि जेट धारा कहा जाता है.
उष्ण पूर्वी जेट धारा
इस जेट धारा का सम्बन्ध भारतीय मानसून से है, वास्तव में यह जेट धारा दक्षिण – पश्चिम मानसून को तीव्र करती है. इसकी उत्पत्ति मार्च महीने के मध्य एशिया, मूलतः तिब्बत के पठार के ऊपरी तीव्र तापीय प्रभाव का परिणाम है. ग्रीष्मकाल में सूर्य के उत्तरायण होने के कारण भारत तथा तिब्बत क्षेत्र से वायु का उत्थान होने लगता है, और क्षोभसीमा के पास पहुंच कर प्रतिचक्रवती दशाओं का विकास होता है. इस प्रतिचक्रवात क्षेत्र से वायु की धाराएं भिन्न – भिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती है. इनमें से एक धारा ध्रुवों की ओर चले जाती है, एक बैकाल झील के क्षेत्र में जाती है. एक अन्य धारा उपोष्ण कटिबंधीय पछुवा जेट में समाहित हो जाती है, तथा एक धारा भारतीय क्षेत्रों एवं बंगाल की खाड़ी प्रवाहित होते हुए अरब सागर, हिन्द महासागर के क्षेत्रों से प्रवाहित होती हुई अरब सागर, हिन्द महासागर के क्षेत्रों में अवतलित होती है.