इस अध्याय में स्तूप निर्माण के बारे में जानकारी दी गई है। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों एवम मंदिरों के बारे में भी बताया गया है साथ ही महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की भी चर्चा की गई है ।
लौह स्तम्भ
- महरौली में कुतुबमीनार के परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ करीब 1500 वर्ष पुराना है।
- इस स्तम्भ की उँचाई लगभग सात मीटर है और पहले हिन्दू व जैन मन्दिर का एक भाग था।
- तेरहवीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मन्दिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की।
- इसकी उचाई 72 मीटर और 3 टन से भी ज्यादा वजन है।
- इस पर खुदे अभिलेख है पर चंद्र नाम के एक शासक का जिक्र किया गया है जो संभवत: गुप्त वंश के थे।
स्तूप
- मिट्टी व अन्य पदार्थो का ढेर या एकत्र किये गये समूह को ‘स्तूप’ कहते हैं।
- स्तूप शब्द संस्कृत- स्तूप: अथवा प्राकृत थूप, ‘स्तूप’ धातु से निष्पन्न है।
- जिसका अर्थ है एकत्रित करना, ढेर लगाना, तोपना या गाड़ना होता है। विद्वानों का विचार है कि ‘स्तूप’ शब्द की मूल ‘स्तु’ धातु है जिसका अर्थ है ‘स्तुति’ करना या प्रशंसा करना है।
- स्तूप विभिन्न आकार के होते है जैसे की गोल या लम्बे, बड़े या छोटे।
- सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा सा डिब्बा रखा रहता है। इन डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते है। इन डिब्बों को धातु मँजूसा कहते है। प्रारंभिक स्तूप , धातु मँजुषा के ऊपर रखा मिटटी का टीला होता था।
स्तूप तथा मंदिर बनाने की प्रक्रिया
- स्तूप तथा मंदिर बनाने की प्रक्रिया में कई अवस्थाएं आती थी इसकी लिए काफी धन खर्च हो जाता था। आमतौर पर राजा या रानी ही इन्हे बनवाने का निर्निये करते थे।
- स्तूप के चारों ओर वेदिका निर्मित थी।
- जिनके चारों ओर एक-एक तोरणद्वार बनाया गया था।
- स्तूप तथा वेदिका बीम प्रदक्षिणा पथ थी।
- वेदिका में कुल 80 स्तंभ थे।
- इनके सजावट के लिए पैसे देने वालो में व्यापारी, कृषक, माला बनाने वाले, इत्र बनाने वाले , लोहार, सुनार जैसे कई लोग शामिल थे जिनके नाम खम्भों रेलिंगों तथा दीवारों पर खुदे है।
चित्र कला
- सैकड़ो वर्ष पूर्व बौद्ध भिक्षुओं के लिए विहार बनाए गए।
- इन गुफाओ के अंदर अंधेरा होने की वजह से अधिकांश चित्र मशालों की रौशनी से बनाए गए थे।
- यह रंग पौधों तथा खनिजों से बनाए गए और 1500 बाद भी चमकदार है।
- इन महान कृतियों को बनाने वाले अज्ञात कलाकार है।
पुस्तकों की दुनिया
- इस युग में कई प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना की गयी है। इन उत्कृष्ट रचनाओं में स्त्री-पुरुषो की वीरगाथाएँ तथा देवताओ से जुड़ी कथाएँ है।
- सिलप्पदिकारम:- करीब 1800 साल पहले सत्तनार द्वारा लिया गया इसमें कोवलन तथा माधवी की बेटी की कहानी है।
- मेघदूत :-इनके रचना कालिदास ने की थी।
- पुराण :- इसका अर्थ प्राचीन है। पुराणों में विष्णु ,शिव ,दुर्गा, पार्वती जैसी देवी – देवताओं से जुड़ी कहानियां है।
विज्ञानं की पुस्तके
- गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम नामक पुस्तक लिखी।
- इसमें लिखा गया की दिन व रात पृथ्वी के अपने धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते है।
- ग्रहण के वैज्ञानिक तर्क बताए गए है , वृत्त की परिधि की मापन की विधि भी लिखे गयी है।
महत्वपूर्ण तिथियाँ
स्तूप निर्माण की शुरुआत – 2300 वर्ष पूर्व
अमरावती – 2000 वर्ष पूर्व
कालिदास – 1600 वर्ष पूर्व
दुर्गा मंदिर – 1400 वर्ष पूर्व
लौह स्तम्भ, अजंता की चित्रकारी– 1500 वर्ष पूर्व