वायुमंडल के विकास की तीन अवस्थाएं हैं –
1 ). आदिकालीन वायुमंडलीय गैसों का ह्रास – प्रारम्भिक वायुमंडल जिसमे हाईड्रोजन (H2) व हीलियम (H) की अधिकता थी वह सूर्य के उत्पन्न हुई सौर पवन के कारण पृथक या समाप्त हो गयी|
2 ). पृथ्वी के ठण्डा होने व विभेदन के दौरान पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकला तथा वर्तमान वायुमंडल का प्रारम्भ होने लगा| जलवाष्प, नाईट्रोजन, कार्बन, मीथेन व अमोनिया प्रचुर मात्रा में थी परन्तु मुक्त ऑक्सीजन बहुत ही कम मात्रा में अवस्थित थी| वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतर से गैसें बहार निकलती है उसे गैस उत्सर्जन (Degassing) कहा जाता है| लगातार ज्वालामुखी उदभेदन से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ने लगी तथा पृथ्वी के ठंडा होने के क्रम में यह जलवाष्प संघनित होकर वर्षा के रूप में गिरने लगी| वर्षा के जल के साथ बड़ी मात्रा में वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड भी वातावरण से धरातल पर आई और इस कारण वातावरण और ठंडा हुआ| जिससे पुनः वर्षा हुई इसी चक्र के परिणाम स्वरूप बड़े – बड़े महासागरों का निर्माण हुआ|
3 ). वायुमंडल की संरचना को जैव मंडल के प्रकाश सश्लेषण की प्रक्रिया ने संसोधित किया| महासागरों के निर्माण के पश्चात जल में उपस्थित विभिन्न तत्वों ने पेराबेंगनी किरणों के कारण जैव रासायनिक अभिक्रियाओं से एक कोशकीय जीवों का उदभव हुआ| धीरे -धीरे जीवों का उदभव हुआ| धीरे धीरे जीवों की ऐसी शाखा विकसित हुई जो प्रकाश संश्लेषण में सक्षम थे तथा जिन्होंने महासागरों को प्रकाश संश्लेषण से उत्पन्न ऑक्सीजन से संतृप्त कर दिया| तत्पश्चात ऑक्सीजन वायुमंडल में प्रवेश करने लगी|