मृदा अथवा मिट्टी (Soil)
मिट्टी भूतल में एक पतली परत के रूप में पायी जाती है. जिसका निर्माण चट्टानों इ टूटने फूटने से प्राप्त हुए खनिजों, जीव जंतु तथा पेड़ पौधों के सड़े – गले अवशेषों, जीवित जीव-जंतु जल तथा गैस के मिश्रण से होता है. अपक्षय तथा अनाच्छादन के विभिन्न कारक भू – तल पर चट्टानों को तोड़ – फोड़ कर शैल चूर्ण के रूप में परिवर्तित कर देती है. जिसमे चट्टानों से प्राप्त खनिजों का मिश्रण होता है. बाद में धीरे – धीरे पेड़ – पौधे व जीव जंतुओं का सड़ा – गला अंश मिल जाता है जिसे ह्यूमस कहा जाता है. इसके अतिरिक्त करोड़ों की संख्या में कीटाणु तथा उनके जैविक पदार्थों पर पलने वाले अनगिनत जीवाणु भी होते है. जो पेड़ पौधों को जीवन प्रदान करते है. मिटटी के रंध्रों में वायु भी होती है, जिसमे को Co2 अधिक मात्रा में पायी जाती है. इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन भी पायी जाती है. अतः हम कह सकते है कि चट्टानों के अपक्षय जलवायु पौधों और करोड़ों भूमिगत कीटाणुओं की बीच होने वाले आपसी क्रियाकलाप का अंतिम परिणाम मिट्टी है. जिसमे ठोस तरल तथा गैसीय पदार्थों का मिश्रण है.
मिट्टी के गुण (Properties Of Soil)
मिट्टी के अपने भौतिक एवं रासायनिक गुण होते है. जिनको निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-
मिट्टी
भैतिक गुण | रासायनिक गुण |
1. रंग 2. गठन 3. संरचना | 1. अम्लीय 2. क्षारीय |
भैतिक गुण
रंग – रंग अपने आप में विशेष महत्व नहीं रखता परन्तु इससे यह पता लग जाता है कि मिट्टी का निर्माण किस वस्तु से हुआ है और कैसे हुआ है.
गठन – मिट्टी के गठन से हमारा तात्पर्य उसमे मिश्रित विभिन्न प्रकार के कणों से है. इसमें बजरी, बालू, चीका तथा गाद सम्मलित है. गठन के अनुसार मिट्टी को निम्नलिखित पांच भागों में बाँट सकते है.
1. मृतिका (चीका मिट्टी) Clay – इस में 45% गाद, 45% मृतिका तथा 10% बालू होता है.
2. मृतिका दोमट (Clay Loam) – इसमें 25% मृतिका, 42% गाद, तथा 33% बालू होता है.
3. दोमट मिट्टी (Loam) – इसमें 18% मृतिका, 42% गाद, और 40% बालू होता है.
4. गाद दोमट (Silt) – 13% मृतिका, 82% गाद, और 5% बालू होता है.
5. बलुई मिट्टी (Sandy Loam) – इसमें 11% मृतिका, 14% गाद, और 75% बालू होता है.
मिट्टी के गठन से उसके रंधों के आकार तथा जल ग्रहण करने की शक्ति का अनुमान हो जाता है. चीका मिट्टी के रंध्र बहुत ही सूक्ष्म होते है.जिसमे से जल बहुत ही धीमी गति से रीसता है. बलुई मिट्टी के रंध्र बड़े होते है जिस कारण उससे जल जल्दी से रिसता है. दोमट मिट्टी पौधों के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. इसमें जुताई सुगमता से हो जाती है. जुताई के दृष्टि से बलुई मिट्टी हल्की होती है, तथा चीका मिटटी को भारी मिट्टी कहते है. चीका मिट्टी भीगने पर चिपचिपी हो जाती है तथा सुखने पर दरारे पड़ जाती है.
संरचना – मृदा संरचना का अर्थ है कि कृषि के लिए जोते जाने पर मिट्टी के कणों की व्यवस्था कैसी होती है. इस आधार पर मिट्टी की संरचना दानेदार (Granular), भुरभुरी (Crumby), खण्डी (Blocky), चपटी पलास्टिक (Ploty Plastic) या स्तम्भी (Comlumnar) हो सकती है.
रासायनिक गुण
1. अम्लीय मिट्टी (Acidic Soil) – जिस मिट्टी में चुने की मात्रा कम होती है, उसे अम्लीय मिट्टी कहते है.
2. क्षारीय मिट्टी – जिस मिट्टी में चुने की मात्रा अधिक होती है क्षारीय मिट्टी कहते है.
- यदि मिट्टी में जल की मात्रा कम हो जाये , तो इसके रंध्रों में वायु भर जाती है जिसे भूमि वायु कहते है. इस वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती जाती है, तथा ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है.चट्टानों के रासायनिक अपक्षय से घुलनशील तत्वों की उत्पत्ति होती है. जीवों और वनस्पतियों के सड़े अवशेषों से ह्यूमस बनता है. जिससे मिट्टी का रंग काला और गाढ़ा हो जाता है.
मृदा निर्माण में सहायक कारक (Factors Of Soil Formation)
1. आधारी चट्टान अथवा जनक पदार्थ (Bed Rock Or Parent Material)
मिट्टी के नीचे स्थित चट्टानी संस्तर को आधारी चट्टान अथवा जनक पदार्थ पदार्थ कहते है. मृदा निर्माण के लिए आवश्यक पदार्थ इन्ही चट्टानों के भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय से ही प्राप्त होता है.
2. जलवायु
मृदा के निर्माण में जलवायु एक महत्वपूर्ण घटक है. छोटी अवधि तक तो मूल जनक पदार्थ का महत्व होता है, परन्तु लम्बी अवधि में जलवायु का महत्व हो जाता है. एक ही प्रकार की जलवायु वाले प्रदेशों में दो विभिन्न मूल जनक पदार्थ एक ही प्रकार की मिट्टी का कर सकते है. उदाहरणतः पश्चिमी राजस्थान में बलुवा पत्थर तथा ग्रेफाइट दो भिन्न जनक है, परन्तु शुष्क जलवायु के प्रभावाधीन उन्होंने एक ही प्रकार की मिट्टी को जन्म दिया है. सोवियत संघ के स्टेपी क्षेत्र में कई प्रकार की चट्टानें मिलती है, परन्तु जलवायु एक ही होने के कारण वहा काली मिट्टी पाई जाती है.
3. जैविक पदार्थ (Living Organism)
जैविक पदार्थों में वनस्पति तथा कीटाणु सम्मलित किये जाते है.
(A) वनस्पति – वनस्पति के अंतर्गत वृक्ष, झाड़िया, घास, तथा काई आती है. इनके पत्तों तथा जड़ों के सड़ने से ह्यूमस निर्माण होता है, जिससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ती है तथा यह पौधों को जीवनदान देती है. इससे रासायनिक क्रियाए तेज हो जाती है जिससे मिट्टी के विकास में तेजी आती है.
(B) कीटाणु (Bacteria) – कीटाणु विभिन्न प्रकार की जलवायु में मिटटी पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव डालती है. कीटाणु ह्यूमस पर जीवित रहते है उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में कीटाणु अधिक सक्रिय रहते है, और ह्यूमस को खाकर समाप्त कर देते है. इन प्रदेशों में ह्यूमस की मात्रा कम होती है. इसके विपरीत ठन्डे प्रदेशों में कीटाणु कम क्रियाशील होते है.
4. स्थलाकृतियां (Topography)
स्थलाकृतिया जैसे ढाल, ऊचाई, उच्चावच मिट्टी के जमाव तथा अपरदन पर प्रभाव डालते है. तेज ढाल वाले क्षेत्रों में नदी, हिमनदी, तथा पवन द्वारा मिट्टी का अपरदन होता है. जिस कारण यहाँ मिट्टी की एक पतली परत रह जाती है. जिसे अवशिष्ट मृदा के नाम से भी जाना जाता है. वही मैदानी क्षेत्रों में मिट्टी की मोटी परत जमा होती है परतु वहां जलप्रवाह कम और उसके रंग गहरे होते है.
5. विकास की अवधि अथवा समय
मिट्टी के विकास में उसकी अवधि का बहुत बड़ा महत्त्व होता है. मिट्टी निर्माण का कार्य एक बहुत धीमी प्रक्रिया है. अनुकूल परिस्थितियों में 1-2 सेंटीमीटर मोती मिट्टी की परत बनने में लगभग दो शताब्दी लग जाते है, और समय बीतने पर मिट्टी के गुण में परिवर्तन होते रहता है.