तटीय मैदान
भारत की तटरेखा 6,000 किमी. लम्बी है. जो पश्चिम में कच्छ के रन से पूर्व में गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा तक विस्तृत है. प्रायद्वीपीय पठार की पश्चिमी एवं पूर्वी सीमा तथा भारतीय तटरेखा के बीच स्थित को पश्चिमी तटीय मैदान संकरे मैदान को तटीय मैदान कहते है. पश्चिमी तट रेखा से पश्चिमी घाट के बीच स्थित मैदान को पूर्वी तटीय मैदान कहते है. ये मैदान या तो समुंद्र की क्रिया से बने है या नदियों द्वारा निक्षेप क्रिया द्वारा बने है.
पश्चिमी तटीय मैदान – यह पश्चिमी घाट (सहाद्रि) के पश्चिम में कच्छ के रन से कन्याकुमारी तक फैला भाग है. धरातल तथा संरचना की दृष्टि से पश्चिमी तटीय मैदान कई उपविभागों में बंटा हुआ है. मुंबई के उत्तर में कच्छ प्रायद्वीप, काठीयाबाड़, तथा गुजरात का मैदान है. इस प्रदेश को मुंबई से गोवा तथा कोंकण, गोवा से मंगलोर तक कर्नाटक का मैदान तथा मंगलौर से कन्याकुमारी तक मालाबार का मैदान कहते है. यह अधिक कटा-फटा क्षेत्र है. जिस कारण यहा मुंबई, मारमागोवा, मंगलोर, तथा कोच्चि जैसी बंदरगाहें पाई जाती है. इस तट में बालू के अनेक टीले तथा लैगून मिलते है. कोच्चि एक लैगून बंदरगाह है.
पूर्वीय तटीय मैदान – पूर्वी घाट तथा पूर्वी तट के बीच पूर्वीय तटीय मैदान स्थित है. जो ओड़िशा व पश्चिमी बंगाल की सीमा पर स्थित स्वर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक विस्तृत है. यह पश्चिमी तट की अपेक्षा अधिक चौड़ा है. कुछ स्थानों में इसकी चौड़ाई 200 किमी. से अधिक है परन्तु कही-कही इसकी चौड़ाई केवल 32 किमी. रह जाती है. यह मैदान महानदी, कृष्णा, कावेरी, तथा गोदावरी के डेल्टा में विस्तृत होने के कारण बड़ी उपजाऊ है. इसे महानदी एवं कृष्णा नदियों के बीच उत्तरी सरकार (Northen Circar) तथा कृष्णा और कावेरी के बीच कोरामंडल तट अथवा कर्नाटक तट (Carnatic Coast) कहते है. इस मैदान के तट पर कई लैगून पाई जाती है, जिनमे चिल्का झील तथा पुलीकट झील प्रसिद्ध है.